ईशावास्योपनिषद

ईशावास्योपनिषद एक महत्वपूर्ण उपनिषद है जो यजुर्वेद के शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण के साथ संबद्ध है। इस उपनिषद में विचारशीलता, आत्मतत्त्व और ईश्वर के विषय में गहरी ज्ञान का वर्णन किया गया है। अपने प्रथम श्लोक “ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्” के माध्यम से प्रसिद्ध हुई है, जिसका अनुवाद है “यह सारा जगत् ईश्वर से परिपूर्ण है, जो कुछ भी इस जगत् में है। एक प्रमुख उपनिषद है जो यजुर्वेद के शाखा के तहत आती है। इस उपनिषद में आध्यात्मिकता, विज्ञान और जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहरी विचारधारा प्रस्तुत की गई है। यह उपनिषद 18 मंत्रों में व्याप्त है और वेदान्त दर्शन के मुख्य सिद्धांतों को उजागर करती है।

ईशावास्योपनिषद में आत्मतत्त्व, कर्म और ईश्वर के विषय में विचार किए जाते हैं। यहां कुछ मुख्य वाक्य उदाहरण दिए गए हैं:
  1. ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। (Ishaavaasyamidam Sarvam Yatkincha Jagatyaam Jagat) अर्थ: संसार में जो कुछ भी है, सब ईश्वर से परिपूर्ण है।
  2. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत्ग्ण्समाः। (Kurvanneveha Karmaani Jijeevishechchhatgnsamaah) अर्थ: जीवन में कर्म करते हुए ही रहो, इच्छा रखो कि तुम सौभाग्यशाली जीवन जीना चाहते हो।
  3. यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद् विजानतः। (Yasminsarvaani Bhutaani Aatmaivaabhoot Vijanatah) अर्थ: जो व्यक्ति सभी प्राणियों में अपने आप को देखता है, वही व्यक्ति सच्ची प्रज्ञा को प्राप्त करता है।
  4. ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥ अर्थ: ईशावास्योपनिषद का प्रारम्भिक मंत्र है जो कहता है, “सर्व जगत् में जो कुछ है, सब कुछ ईश्वर का ही है। उसके द्वारा त्याग करके अन्य को भोगों से भोगों का त्याग करें, किसी के धन को छीने नहीं॥”
  5. यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः। अविज्ञातं विजानतां विजानता तं वेद यः॥ अर्थ: ईशावास्योपनिषद का यह मंत्र कहता है, “जिसका मत अविज्ञात है, उसका मत विज्ञात है। जो नहीं जानता है, उसे विजानने वाला विज्ञानी है॥”
  6. अन्धं तमः प्रविशन्ति ये ऽविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः॥ अर्थ: ईशावास्योपनिषद के इस मंत्र में कहा गया है, “जो अविद्या को पूजते हैं, वे अंधेरे में जाते हैं। जिससे वे अविद्या के परे हो जाते हैं, वह विद्या में रमण करने वाले लोगों की भाँति बढ़ते हैं॥”

इसका अध्ययन आत्मज्ञान, ईश्वर-भक्ति और जगत् में सहज संवेदनशीलता को विकसित करने में मदद कर सकता है। इसे गहराई से पढ़कर और गुरु के मार्गदर्शन में आप अपनी आत्मा की अध्यात्मिकता को समझ सकते हैं।