प्रसिद्ध “रक्षाबंधन कथा”

“रक्षाबंधन” एक पर्व है जिसे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का महत्व भाई-बहन के प्यार और सम्मान का प्रतीक होता है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे “रक्षाबंधन पूजा” के रूप में भी जाना जाता है।

यहां एक प्रसिद्ध “रक्षाबंधन कथा” दी जा रही है:

किंकरव राजा के एक सुंदरी बहन थी जिसका नाम सत्यवती था। सत्यवती की अलंकरण की अद्भुतता और उनके अच्छे गुणों की चर्चा पुरे राज्य में थी। अपने बचपन में अपनी  छोटी उम्र में ही बहन सत्यवती के साथ, वे एक-दूसरे की मदद और समर्थन में बड़ी ही कठिनाइयों का सामना करते आये थे।

बचपन में ही अपने बड़े भाई को बड़ा दिल दिखाने वाली सत्यवती ने एक दिन अपने भाई से मिलकर उसे एक खास विचार रखकर कहा, “भईया, आप मेरे लिए जितने भी उपहार लाते हैं, मैं उन्हें बहुत ही अच्छे से रखती हूँ, लेकिन क्या आप मुझे कुछ ऐसा उपहार नहीं दे सकते, जिससे मेरी रक्षा हो सके?”

“रक्षाबंधन किंकरव राजा व सत्यवती

किंकरव राजा ने उसकी इच्छा को पूरा करने का संकल्प किया और एक दिन उन्होंने उसे एक विशेष गहना दिलाया, जिसे सत्यवती अपने हाथों में बांधकर रखने लगी। राजा ने उसे प्रतिज्ञा दिलाई कि इस गहने की पहचान केवल उसके भाई को ही करने में होगी और जब तक उसके भाई वह गहना नहीं पहनते, तब तक वह उसे नहीं उतार सकेगी।

समय बीतता गया और राजा का भाई किंकरव युद्ध में लड़ने के लिए जा रहा था। उसने देखा कि उसकी बहन सत्यवती गहने की पहचान करने के लिए बेताबी से बैठी हुई थी। उसने उसे गहने की पहचान करने का विचार किया, लेकिन वह काम उसके लिए किसी भी तरह संभव नहीं था। तब उसने एक उपाय सोचा और उसने अपनी बहन के साथ खेलते समय उस गहने को झट से उतार लिया और उसे अपनी बहन को समर्पित कर दिया।

सत्यवती ने अपने भाई की इस भावना को देखकर बहुत खुशी महसूस की और उसने उस गहने को अपने हाथों में बांधकर रख लिया। उसके भाई ने उसे आशीर्वाद दिया और उसने उसकी रक्षा की।

इसी घटना के पश्चात्, रक्षाबंधन का पर्व शुरू हुआ, जिसमें बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए उन्हें राखी बांधती हैं और भाइयों ने अपनी बहनों के लिए उन्हें उपहार देते हैं। यह पर्व भाई-बहन के प्यार और आपसी सम्मान का प्रतीक होता है और इसका उद्देश्य उनके बीच में मजबूत रिश्तों को मजबूती से बांधना होता है।