माँ बगलामुखी देवी जयंती

पीताम्बरा देवी जयंती

अष्टम महाविद्या बगलामुखी देवी स्तंभन शक्ति से आपके सभी कष्टों का नाश करने में सहज ही समर्थ हैं। माँ अपने भक्तों के सभी शारीरिक कष्टों- मानसिक वेदनाओं का नाश कर देती हैं। माँ बगलामुखी शत्रुनाश, वाद-विवाद में विजय, वाकसिद्धि, कोर्ट- केस मुकदमों में विजय, पुलिस केस , झूठे अभियोगों से मुक्ति दिलाती हैं। माँ बगलामुखी की उपासना से शत्रुओं का नाश होता है, भक्त का जीवन सभी बाधाओं मुक्त हो जाता है। माँ का एक प्रिय नाम पीताम्बरा है, माँ को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। पीताम्बरा माँ की पूजा में पीली सामग्री का बहुतायत प्रयोग होता है।

FOR MORE

माँ बगलामुखी के नाम का अर्थ

बगला शब्द संस्कृत के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका भावार्थ अलौकिक सौंदर्य होता है, जो देवी माँ  के दर्शन करने वाले साधक को ही अनुभव हो सकता है। देवी बगलामुखी जिसे अपने अद्भुत दर्शन दे दें. वह होश में रह जाये, ऐसा हो ही नहीं सकता।

देवी बगलामुखी का स्वरुप

त्रिनेत्रों वाली स्वर्ण कांतियुक्त बगलामुखी देवी स्वर्ण के रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान होती हैं। स्वर्णमय रत्नजड़ित रथ पर आरूढ़ होकर शत्रुओं का नाश करती हैं। चम्पा के पुष्प की माला धारण करने वाली देवी बगलामुखी के भक्त को तीनों लोकों में कोई हरा नहीं सकता है। वह जीवन के हर क्षेत्र सफलता प्राप्त करता है।

FREE TO CALL

देवी बगलामुखी माता व्रत विधि

 सुबह उठकर नहा लें, यदि संभव हो तो पीला कपड़ा ही पहने, नहीं तो कोई भी चलेगा, मन मे “माँ बगलामुखी नमस्तुभ्यं” या “ह्लीं” बीजमंत्र का का जाप करते रहें |

पूजा मे पीली सामग्री का प्रयोग करें :- हल्दी या केसर,  बेसन का लड्डू या पीली बर्फी,  पीला कनेर पुष्प, पीला फूल या माँ का पसंदीदा चंपा पुष्प,  पीला वस्त्र, किसमिस, पीली सरसों आदि |

घर के मंदिर मे पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पीली सरसों डालकर माँ की यन्त्र सहित फोटो पश्चिम दिशा मुख करके स्थापित कर दें, सामने पीतल के कलश मे जल मे हल्दी डाल कर रख दें | पूर्व की ओर मुँह करके माँ की कथा पढ़ें एवं आरती करें,  पीली सरसों थोड़ी घर-कार्यस्थल पर डाल कर शेष पंछिंयों को डाल दें व जल भी थोड़ा सभी पर छिड़ककर पौंधो मे डाल दें |

व्रत मे एक समय  मीठा भोजन लें, अथवा दोनों समय व्रत में खाद्य पदार्थ या फलाहार करें |

देवी बगलामुखी कथा। Baglamukhi Vrata Story

देवी बगलामुखी माँ के प्रागट्य की प्रामाणिक कथा इस प्रकार है :

कथा समुद्र मंथन के समय की है। वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) को देवराज इंद्र सहित देवों, व दानवेन्द्र बलि के नेतृत्व में असुरो ने, मंदराचल को मथानी व नागराज वासुकी को रस्सी बना कर समुद्र मंथन प्रारंभ कर दिया। जिसके भयंकर घूमने की गति, व घूर्णन के उच्च दबाव से समुद्र का समस्त जल पृथ्वी को डूबाकर नष्ट करने को उद्यत होने लगा | इसके साथ ही एक और समस्या उत्पन्न हो गई, नागराज वासुकि की भयंकर विष- फुंकार [संसार का प्रचंडतम विष] , जो श्वांस- प्रश्वांस के रूप में असुरों की मृत्यु का कारण बन रही थी, वे इसे नहीं सह पा रहे थे। इन दोनों समस्याओं से भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री हरी सहित सभी लोग चिंतित हो गए तो श्री हरी विष्णु समस्या के हल के लिए हरिद्वा सरोवर पर देवी की तपस्या व ध्यान करने लगे |

वैशाख शुक्ल अष्टमी को  माँ बगलामुखी जयंती इसीलिये मनाई जाती है

इसी दिन  देवी बगलामुखी ने श्री हरी को दर्शन देकर मनोरथ पूरा करने का वचन दिया, एवं उसी समय उस समुद्री तूफ़ान रूपी सुनामी को रोककर सागर को वहीं स्तंभित कर दिया। साथ ही विष की ऊर्जा को भी शीतल दाहमुक्त एवं हानिरहित  मनोरथ पूर्ण होने तक कर दिया। जिससे सृष्टि की रक्षा व समुद्र मंथन संभव हो सका | जब मंथन के दबाव से मंदराचल पाताल मे धसने लगा, तो विष्णु जी ने कूर्मावतार लेकर मंदराचल को धारण किया, व देवी पीतांबरा ने मंदराचल को कूर्मावतार की पीठ पर स्थिर कर दिया| देवी बगलामुखी के बुद्धि पर प्रभाव से असुरो ने कोई उत्पात समुद्र मंथन के समय नहीं किया, व केवल मदिरा व घोड़ा लेकर भी भ्रमित शांत रहे|

अमृत निकलने पर जब देवों व दैत्यो मे संघर्ष होने लगा, तो देवी ने दैत्यो की संपूर्ण बुद्धि हर ली, वे श्री हरी के मोहिनी रूप मे उलझकर मदिरा को अमृत समझ कर पी गये | इस तरह देवताओं और मनुष्यों मनोरथ माँ बगलामुखी ने पूर्ण किया, तथा संपूर्ण समुद्र मंथन 14 रत्न उनकी कृपा से प्राप्त हुये |

“जो इस कथा को सुनता व सुनाता है, उसके समस्त मनोरथ पूरे होकर सारे कष्ट दूर होते हैं”

देवी बगलामुखी माँ आरती

जय पीताम्बरधारिणी जय सुखदे वरदे, मातर्जय सुखदे वरदे ।  भक्त जनानां क्लेशं भक्त जनानां क्लेशं सततं दूर करे ।।             

                                                                                                                                             जय देवि जय देवि ।।१।।

असुरैः पीडितदेवास्तव शरणं प्राप्ताः, मातस्वशरणं प्राप्ताः ।  धृत्वा कौर्मशरीरं धृत्वा कौर्मशरीरं दूरीकृतदुःखम् ।।     

                                                                                                                                             जय देवि जय देवि ।।२।।

मुनिजनवन्दितचरणे जय विमले बगले, मातर्जय विमले बगले।   संसारार्णवभीतिं संसारार्णवभीतिं नित्यं शान्तकरे ।।                                     

                                                                                                                                            जय देवि जय देवि ।।३।।

नारदसनकमुनीन्द्रैर्ध्यातं पदकमलं मार्तध्यातं पदकमलं ।  हरिहरद्रुहिणसुरेन्द्रैः हरिहरद्रुहिणसुरेन्द्रैः सेवितपदयुगलम् ।।                       

                                                                                                                                           जय देवि जय देवि ।।४।।

काञ्चनपीठनिविष्टे मुदगरपाशयुते, मातर्मुदगरपाशयुते ।   जिह्वावज्रसुशोभित जिह्वावज्रसुशोभित पीतांशुकलसिते ।।                             

                                                                                                                                           जय देवि जय देवि ।।५।।

   बिन्दुत्रिकोणषडस्त्रैरष्टदलोपरिते, मातरष्टदलोपरिते ।  षोडशदलगतपीठं षोडशदलगतपीठं भूपुरवृत्तयुतम् ।।                                       

                                                                                                                                           जय देवि जय देवि ।।६।।

    इत्थं साधकवृन्दश्च़िन्तयते रूपं मातश्च़िन्तयतेरूपं ।  शत्रुविनाशकबीजं शत्रुविनाशकबीजं धृत्वा हृत्कमले ।।                                                                                                                                                                                                                                                                               जय देवि जय देवि ।।७।।

अणिमादिकबहुसिद्धिं लभते सौख्ययुतां, मातर्लभते सौख्ययुतां ।भोगानभुक्त्वा सर्वान् भोगानभुक्त्वा सर्वान् गच्छति विष्णुपदम्        

                                                                                                                                           जय देवि जय देवि ।।८।।

पूजाकाले कोsपि आर्तिक्यं पठते, मातरार्तिक्यं पठते ।  धनधान्यादिसमृद्धः धनधान्यादिसमृद्धः सान्निध्यं लभते ।।                                       

                                                                                                                                            जय देवि जय देवि ।।९।।

बगलामुखी देवी जयंती हिन्दी महीने के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है। इस दिन भारत में बगलामुखी देवी की पूजाव्रत एवं उपासना पूरे धूमधाम से की जाती है। तांत्रिकों के लिए भी यह दिन बहुत अधिक महत्व रखता है, और आम साधकों के लिए भी यह दिन सभी समस्याओं का नाश करने वाला है।इस दिन शत्रुनाशिनी, विजयदायिनी बगलामुखी माँ का विशेष पूजन , और यज्ञअनुष्ठान संपन्न किया जाता है।

                                                             

                                                  ” देवी बगलामुखी माँ की जय”