भारतीय दर्शन,संस्कृति और धरोहर

भारतीय दर्शन एक विशेषता से भरा हुआ विचारधारा है जो भारतीय संस्कृति और धरोहर के विभिन्न पहलुओं, सिद्धांतों, और मूल्यों को शामिल करती है। भारतीय दर्शन विचारधारा विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक प्रणालियों को सम्मिलित करती है, जो भारतीय भूमि में विकसित हुईं। भारतीय दर्शन (Indian Philosophy) के मूल तत्व वेदांत परम्परा में निहित होते हैं, जिनमें मन, आत्मा, जगत्, ईश्वर, धर्म आदि के अद्वितीय और अमूल्य मूल्यों की व्याख्या की जाती है। निम्नलिखित हैं भारतीय दर्शन के मूल तत्व:

  1. वेदांत: वेदांत वेदों की उच्चतम दर्शनिक एवं आध्यात्मिक परंपरा है जिसमें ब्रह्म और आत्मा की अद्वितीयता का आवश्यकता से स्वरूप परीक्षण किया जाता है।
  2. सांख्य: सांख्य दर्शन में प्रकृति और पुरुष की विवेकपूर्ण व्याख्या की जाती है और जीवन की मुक्ति को प्राप्त करने के लिए साधनाओं का उपयोग किया जाता है।
  3. न्याय: न्याय दर्शन में मनुष्य की ज्ञान की प्राप्ति, तर्क, प्रमाण, आत्मा, ईश्वर, दुख-सुख आदि के विषयों पर व्याख्या की जाती है।
  4. वैशेषिक: वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या की जाती है और इसमें स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों की प्रमाणिकता को जांचने का प्रयास किया जाता है।
  5. योग: योग दर्शन में मानसिक और शारीरिक साधनाओं के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग दिखाया जाता है।
  6. मीमांसा: मीमांसा दर्शन में वेदों के विचारित करने का तरीका और कर्मकांडीय प्रथाओं की व्याख्या की जाती है।
  7. चार्वाक: चार्वाक दर्शन में प्रमाणों की प्राथमिकता को मान्यता दी जाती है और आत्मा, दुख-सुख आदि को मानव मनोविज्ञान से समझाने का प्रयास किया जाता है।

ये केवल कुछ भारतीय दर्शनों के मूल तत्व हैं, लेकिन इसके अलावा भी भारतीय दर्शन एक विशाल और विविध परंपरा है जिसमें धार्मिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक और मनोविज्ञानिक मुद्दे शामिल हैं।

भारतीय संस्कृति और दर्शन में वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत, पुराण, और अन्य ग्रंथ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन ग्रंथों के माध्यम से भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता, नैतिकता, और विचारों का विकास हुआ है।