शास्त्रोक्त आचारण

शास्त्रोक्त आचारण (Shastrokt Aacharan) हिंदू धर्म के आचार-विचार को भावगत शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अनुसरण करने का मतलब है। हिंदू धर्म में शास्त्र अहिंसा, सत्य, अहिंसा, धर्म और धर्म के साथ संबंधित विभिन्न नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति महत्वपूर्ण हैं। ये शास्त्रीय आचार-विचार धार्मिक जीवन में सामाजिक और नैतिक अनुशासन को बढ़ावा देते हैं।

इसमें कुछ महत्वपूर्ण शास्त्रों का उल्लेख है, जिनमें योगवासिष्ठ, गीता, मनुस्मृति, पुराण, वेद, उपनिषद, धर्मशास्त्र और स्मृति शास्त्र शामिल हैं। ये शास्त्र संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं और विभिन्न धार्मिक विचारों, वेदांत, दर्शनशास्त्र और नैतिकता के प्रति व्यक्तियों को उनके धर्म और आचार्यों के विचारों के साथ परिचय करते हैं।

राजाओं के लिए नियम

(मंत्री परिषद, प्रजा, सेवक,संधि राजकोष, आदि राज्य अच्छे ढंग से चलाने के लिये), प्रजा के लिए नियम, आपदा काल के नियम, कृषि के नियम, युद्ध के नियम, संधि के नियम, वर्षा- ग्रीष्म- सर्दी के रोजमर्रा एवं विशेष नियम,सेवक के कार्य, देश-काल के अनुसार नियम , यात्रा के नियम आदि शास्त्रों में वर्णित हैं। जिसके पालन करने से देश समृद्ध और प्रजा सुखी रहेगी। वेदों, पुराणों, उपनिषदों, और विभिन्न सनातन हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में राजनीति, विज्ञान, सैन्य शिक्षा, अर्थशास्त्र, अंतरिक्ष शास्त्र, चिकित्सा, दूसरे ग्रहों से संबंध, आदि सभी विषय शास्त्रों में वर्णित हैं। जिनका पालन कर भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था, और सभी धर्म प्रवर्तक, व्यापारी, दार्शनिक समूचे विश्व से यहाँ शिक्षा लेने आते थे।

धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों में अलग-अलग आचारण सिद्धांत होते हैं जिनमें संघटना और संस्कारों के लिए निर्दिष्ट नियमों का पालन किया जाता है। इनमें कई धार्मिक पर्वों, व्रतों, उत्सवों और पूजा-अर्चना सम्बंधित नियम शामिल हो सकते हैं। यह नियम व्यक्ति के धर्म, जाति, वंश, स्थान और समय के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। हिंदू धर्म में अनेक पर्व, व्रत और उत्सव होते हैं जैसे दीपावली, होली, नवरात्रि, शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी आदि। इन त्योहारों को शास्त्रों के अनुसार मनाने का नियम बनाया गया होता है।

शास्त्रोक्त आचारण धार्मिक जीवन में संतुलन, सभ्यता, सज्जनता, समरसता, और शांति के मूल्यों को बढ़ावा देता है। ये शास्त्रीय आचार धार्मिक समाज में एकात्मता और तुलनात्मकता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं और सामाजिक व्यवस्था में एक मेल-जोल और उन्नति के लिए आधार स्थापित करते हैं। इसके माध्यम से व्यक्ति और समाज दोनों के विकास के लिए एक आदर्श जीवनशैली दिखाई जाती है।