पश्चिमी दर्शन (Western Philosophy)

पश्चिमी दर्शन (Western Philosophy) पश्चिमी दुनिया में विकसित हुए दर्शनिक और तत्त्वशास्त्रिय परंपराओं का संचय है। यह विचारधाराएं और सिद्धांत हैं जिन्होंने भारतीय दर्शनों के साथ तुलना में अलग प्रकार के प्रश्नों और मुद्दों पर विचार किया है। निम्नलिखित हैं कुछ पश्चिमी दर्शन के मुख्य प्रतिस्थान:

  1. प्लेटोनिज्म: प्लेटो का दर्शन आदर्शवाद, राजनीतिक व्यवस्था, आत्मा की अमरता और ज्ञान के महत्व को उजागर करता है।
  2. अरिस्टोटलियनिज्म: अरिस्टोटल का दर्शन तर्कशास्त्र, नैतिकता, व्यक्ति की खोज, निष्कलंकता आदि पर आधारित है।
  3. स्तोयिस्म: स्तोयिक दर्शन में सुख-दुख के समर्पण, समता, और स्वयंनियंत्रण का मार्ग बताया गया है।
  4. कांतियनिज्म: इमानुएल कांत के दर्शन में तत्त्वज्ञान, नैतिकता, आस्थाएँ, और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर विचार किया गया है।
  5. व्यावसायिक नैतिकता (Utilitarianism): इसमें क्रियान्वयन या सुख का उत्तराधिकारी तर्क दिया गया है, जिसके अनुसार समाज का सबसे बड़ा हित सुख का होना चाहिए।
  6. एक्सिस्टेंशियलिज्म: एक्सिस्टेंशियलिज्म में मनवाद, मौत, अस्तित्व की मूलभूत परेशानियाँ और व्यक्ति के धर्म की महत्वपूर्ण विचारित की जाती है।
  7. मार्क्सवाद (Marxism): कार्ल मार्क्स का दर्शन आर्थिक व्यवस्था, वर्ग विभाजन, और उसके परिणाम पर विचार करता है।
  8. फेनोमेनोलॉजी: इसमें व्यक्ति के अनुभव, चेतना, और विश्व की प्रमाणिकता को समझने का प्रयास किया जाता है।
  9. प्रगतिवाद (Pragmatism): प्रगतिवाद में अनुभव, प्रयोग, और प्रैक्टिकलिटी की महत्वपूर्णता पर विचार किया जाता है।

पश्चिमी दर्शन की प्रमुख शाखाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. यूनानी दर्शन (Greek Philosophy): ग्रीक दर्शन का आदान-प्रदान यूनानी फिलॉसफर्स सोक्रेटीस, प्लेटो और आरिस्टॉटल के विचारों पर आधारित है। इन्होंने ज्ञान, नैतिकता, लॉजिक, राजनीति, आदि के मुद्दों पर विचार किए।
  2. मध्यकालीन दर्शन (Medieval Philosophy): मध्यकालीन यूरोप में थोमस एक्विनस, अगुस्टिनस और अन्य दार्शनिकों ने दार्शनिक विचारों की विकसिति की। यह धार्मिकता, योग्यता की एकता, ईश्वरीयता, आदि के विषयों पर विचार किए।
  3. मॉडर्न दर्शन (Modern Philosophy): 17वीं और 18वीं सदी में यूरोप में आयुक्त दार्शनिक विचारधारा को मॉडर्न दर्शन कहा जाता है। रेने डेसकार्ट, इम्मानुएल कांत, जॉन लॉक, डेविड ह्यूम आदि इस दर्शन के प्रमुख प्रतिनिधियों थे। यह ज्ञान, विचारशीलता, आत्मविश्वास, स्वतंत्र विचार आदि के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता था।
  4. कंटिनेंटल दर्शन (Continental Philosophy): 19वीं और 20वीं सदी के बाद यूरोप में विकसित एक दर्शनिक विचारधारा है जिसमें फ्रेडेरिक नीचे, मार्टिन हीडेगर, जीन-पॉल सार्टर, मिशेल फूको, आदि के विचार शामिल हैं। इसमें मनवाद, भाषा, सामाजिक मार्गदर्शन, व्यक्तिगत अनुभव, आदि पर विचार किए जाते हैं।
  5. आनालिटिकल दर्शन (Analytic Philosophy): 20वीं सदी में अमेरिका और यूरोप में विकसित दर्शनिक विचारधारा है, जिसमें लॉजिक, भाषा विज्ञान, मनोविज्ञान, विज्ञानिक तर्क आदि पर विचार किए जाते हैं।

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